एक हिंदुत्ववादी नेता, राजनीतिक चिंतक और स्वतंत्रता सेनानी वीर सावरकर के बारे में जिनका पूरा नाम “विनायक दामोदर सावरकर” था।
वीर सावरकर एक ऐसे पहले स्वतंत्रता सेनानी और राजनेता थे जिसने विदेशी कपड़ों की होली जलाई थी। वीर सावरकर का जन्म 28 मई,1883 में महाराष्ट्र के नासिक जिले के भागुर गांव में हुआ था। उनके पिता का नाम दामोदर पंत सावरकर और माता का नाम राधाबाई सावरकर था। वीर सावरकर जब मात्र 9 वर्ष के थे तब हैजा बीमारी के कारण उनकी मां का देहांत हो गया था। उसकी कुछ वर्ष उपरांत उनके पिता का भी वर्ष 1899 में प्लेग की महामारी में निधन हो गया था। इसके बाद वीर सावरकर के बड़े भाई ने परिवार के भरण-पोषण का भार संभाला। वीर सावरकर जब 11
वर्ष के थे तभी उन्होंने “वानर सेना“ नाम का समूह बनाया था। जब वीर सावरकर हाई स्कूल में थे उसी दौरान वे बाल गंगाधर तिलक द्वारा शुरू किए गए “शिवाजी उत्सव“ और “गणेश उत्सव“ आयोजित किया करते थे। वीर सावरकर बाल गंगाधर तिलक को ही अपना गुरु मानते थे।
वर्ष 1901 मार्च में, वीर सावरकर का विवाह “यमुनाबाई“ से हुआ था। वर्ष 1902 में, वीर सावरकर में स्नातक के लिए पुणे के “फर्ग्युसन कॉलेज“ में दाखिला लिया। आर्थिक स्थिति अच्छी न होने के कारण उनके स्नातक की शिक्षा का खर्च उनके ससुर यानी यमुनाबाई के पिता ने उठाया। वीर सावरकर ने पुणे में “अभिनव भारत सोसाइटी“ का गठन किया और बाद में स्वदेशी आंदोलन का भी हिस्सा बने। कुछ समय बाद वह बाल गंगाधर तिलक के साथ “स्वराज दल“ में शामिल हो गए। वीर सावरकर की देशभक्ति को देखते हुए और स्वतंत्रता आंदोलन की गतिविधियों के कारण अंग्रेज सरकार ने उनकी स्नातक की डिग्री जब्त कर ली थी।
वर्ष 1906 जून में बैरिस्टर बनने के लिए वीर सावरकर इंग्लैंड चले गए और वहां के भारतीय छात्रों को भारत में हो रहे ब्रिटिश शासन के विरोध में एक जुट किया। उन्होंने वहीं पर “आजाद भारत सोसाइटी“ का गठन किया। वीर सावरकर ने अंग्रेजों से भारत को मुक्त कराने के लिए हथियारों के इस्तेमाल की वकालत की थी और इंग्लैंड में ही हथियारों का एक दल तैयार किया था। “इंडियन सोशियोलॉजिस्ट“ और “तलवार“ नामक पत्रिका में वीर सावरकर द्वारा लिखे गए लेख प्रकाशित होते थे। वीर सावरकर एक ऐसे लेखक थे जिनकी रचना के प्रकाशित होने से पहले ही रोक लगा दिया जाता था। इसी दौरान वीर सावरकर की पुस्तक “द इंडियन वॉर ऑफ इंडिपेंडेंस
1857″ तैयार हो चुकी थी परंतु ब्रिटिश सरकार ने ब्रिटेन और भारत में पुस्तक के प्रकाशित होने पर रोक लगा दी। वीर सावरकर ने इस पुस्तक में 1857 के “सिपाही विद्रोह“ को ब्रिटिश सरकार के खिलाफ स्वतंत्रता की पहली लड़ाई बताया।
वर्ष 1909 में, वीर सावरकर के सहयोगी ‘मदन लाल धींगरा‘ ने विलियम हट कर्जन वायली को गोली मार दी थी। इस हत्या के बाद वीर सावरकर पूरी तरह ब्रिटिश सरकार के चंगुल में फंस चुके थे। उसी दौरान वीर सावरकर को 13 मार्च 1910 को लंदन में कैद कर लिया गया। अदालत में उनपर गंभीर आरोप लगाए गए और 50 साल की सजा सुनाई गई। वीर सावरकर को काला पानी की सजा देकर अंडमान के सेलुलर जेल भेज दिया गया और लगभग 14 साल के बाद रिहा कर दिया गया। वीर सावरकर ने जेल में रहने के दौरान कील और कोयले से कविताएं लिखी और उन कविताओं को याद कर लिया। वीर सावरकर ने जेल से छूटने के बाद दस हजार पंक्तियों की कविता को दोबारा लिखा।
वर्ष 1920 में महात्मा गांधी, विट्ठलभाई पटेल और बाल गंगाधर तिलक ने वीर सावरकर को रिहा करने की मांग की। 2 मई 1921 में, वीर सावरकर को रत्नागिरी जेल भेजा गया और वहां से फिर उनको यरवदा जेल भेज दिया गया। रत्नागिरी जेल में उन्होंने “हिंदुत्व पुस्तक“ की रचना की। वर्ष 1924 में, वीर सावरकर को रिहाई मिली मगर रिहाई की शर्तों के अनुसार उनको न तो रत्नागिरी से बाहर जाने की अनुमति थी और न ही वह 5 साल तक कोई राजनैतिक कार्य कर सकते थे। रिहा होने के बाद वीर सावरकर ने 23
जनवरी 1924 को “रत्नागिरी हिंदू सभा“ का गठन किया और भारतीय संस्कृति और समाज कल्याण के लिए काम करना शुरू किया। वर्ष 1937 में, वीर सावरकर ‘अखिल भारतीय हिंदू महासभा‘ के अध्यक्ष बने और आगे जाकर ‘भारत छोड़ो आंदोलन‘ का हिस्सा भी बने।
वीर सावरकर को पाकिस्तान का निर्माण पसंद नहीं था इसी कारण उन्होंने गांधीजी से ऐसा करने के लिए निवेदन किया। नाथूराम गोडसे ने उसी दौरान महात्मा गांधी की हत्या कर दी जिसमें वीर सावरकर का भी नाम आया था। वीर सावरकर को एक बार फिर जेल जाना पड़ा परंतु सबूतों के अभाव में उन्हें रिहा कर दिया गया। उनके द्वारा ही तिरंगे के बीच में धर्म चक्र लगाने का सुझाव सबसे पहले दिया गया। 01 फरवरी 1966 को उन्होंने आमरण उपवास करने का निर्णय लिया तत्पश्चात 26
जनवरी 1966 को उन्होंने अपने जीवन को त्याग दिया।