Skip to content

Biography of Sukhdev in Hindi

  • by


आइए
जानते हैं एक प्रसिद्ध भारतीय क्रांतिकारीसुखदेवके बारे में जिन्होंने मात्र 24 वर्ष की उम्र में भारत की आजादी के लिए अपने आप को शहीद कर दिया था।

भारत को आजाद कराने के लिए अनेक भारतीय देशभक्तों ने अपने प्राणों की आहुति दे दी थी। ऐसे ही देशभक्त शहीदों में से एक थे सुखदेव, जिन्होंने अपना संपूर्ण जीवन भारत को अंग्रेजों की बेड़ियों से मुक्त कराने के लिए समर्पित कर दिया था। सुखदेव का जन्म 15 मई 1907 में एक मिडिल क्लास सिख परिवार में हुआ था।सुखदेव के जन्म स्थान के विषय में दो राय हैं: कुछ लोगों का मानना है कि इनका जन्म लुधियाना में हुआ था और कुछ लोग मानते हैं कि इनका जन्म लायलपुर में हुआ था। सुखदेव के पिता का नाम रामलाल और माता का नाम रल्ली देवी था। जब सुखदेव 3 वर्ष के थे तभी उनके पिता का देहांत हो गया था। जिसके बाद उनका पालन-पोषण उनकी मां और ताऊ अचिंतराम ने किया था। उनके ताऊ आर्य समाज से काफी प्रभावित थे जिसके कारण सुखदेव भी समाज सेवा व देशभक्तिपूर्ण कार्यों में आगे बढ़ने लगे थे।

सुखदेव का प्रारंभिक जीवन लायलपुर में बीता था और यही इनकी प्रारंभिक शिक्षा भी हुई थी। जब सुखदेव महज 12 वर्ष के थे तब वर्ष 1919 में जलियांवाला बाग के भीषण नरसंहार के कारण देश में भय तथा आतंक का वातावरण बन गया था। उस समय स्कूलों तथा कॉलेजों में तैनात ब्रिटिश अधिकारियों को भारतीय छात्रों द्वारा सलाम किया जाता था लेकिन एक दिन सुखदेव ने दृढ़तापूर्वक ऐसा करने से मना कर दिया, जिसके कारण उन्हें ब्रिटिश अधिकारियों की मार खानी पड़ी। स्कूल समाप्त करने के बाद सुखदेव ने आगे की पढ़ाई के लिए लाहौर के नेशनल कॉलेज में प्रवेश लिया, जहां पर उनकी मुलाकात भगत सिंह से हुई। उन दोनों की सोच एक दूसरे से मिलती थी और जल्द ही दोनों का परिचय गहरी दोस्ती में बदल गया था। 

वर्ष 1926 में, लाहौर में नौजवान भारत सभा का गठन हुआ। इसके मुख्य योजक सुखदेव, भगत सिंह, यशपाल, भगवतीचरण और जयचंद्र विद्यालंकार थे। असहयोग आंदोलन की विफलता के बाद नौजवान भारत सभा ने देश के नवयुवकों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया। वह नैतिक कार्यक्रम, साहित्यिक तथा सामाजिक विचारों पर विचार गोष्ठियाँ करना, स्वदेशी वस्तुओं, देश की एकता, सादा जीवन, शारीरिक व्यायाम तथा भारतीय संस्कृति और सभ्यता पर विचार आदि पहलुओं पर चर्चा करते थे। इसके प्रत्येक सदस्य को शपथ लेनी होती थी कि वह देश के हितों को सर्वोपरि स्थान देगा। परंतु कुछ मतभेदों के कारण इसकी अधिक गतिविधि नहीं हो सकी। सितंबर 1928 में, दिल्ली स्थित फिरोजशाह कोटला के खंडहर में उत्तर भारत के प्रमुख क्रांतिकारियों की एक गुप्त बैठक हुई। इसमें एक केंद्रीय समिति का निर्माण हुआ और समिति का नाम “हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी रखा गया।

सुखदेव को पंजाब की समिति का उत्तरदायित्व दिया गया। उसी समय साइमन कमीशन भारत आया था जिसका पूरे भारत में विरोध हो रहा था। पंजाब में इसका नेतृत्व लाला लाजपत राय कर रहे थे। 30 अक्टूबर को लाहौर में एक विशाल जुलूस का नेतृत्व करते हुए लाला लाजपत राय घायल हो गए और 17 नवंबर 1928 को उनका निधन हो गया। जिसके चलते सुखदेव और भगत सिंह ने ब्रिटिश सम्राज्य से बदला लेने का निश्चय किया। दिल्ली में सेंट्रल असेंबली हॉल में बमबारी करने के बाद सुखदेव और उनके साथियों को पुलिस ने पकड़ लिया था और उन्हें मौत की सजा सुनाई गई थी। 23 मार्च 1931 को सुखदेव, भगत सिंह और राजगुरु को लाहौर सेंट्रल जेल में फांसी दे दी गई। सुखदेव ने अपने जीवन को देश के लिए न्यौछावर कर दिया और मात्र 24 वर्ष की उम्र में वे शहीद हो गए।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *