आइए जानते हैं भारत के नौवें प्रधानमंत्री और भारतीय राजनेता पी.वी. नरसिम्हा राव के बारे में जिनका पूरा नाम “पामुलापति वेंकट नरसिंह राव” था।
उनका प्रधानमंत्री बनना इस बात के लिए भी महत्वपूर्ण है कि वह पहले दक्षिण भारतीय थे जो भारत के प्रधानमंत्री बने। राजनेता के साथ-साथ राव कई भाषाओं के विद्वान भी थे। उन्हें 17 भाषाओं का ज्ञान था और संस्कृत के वे बड़े विद्वान थे। पी.वी. नरसिंह राव का जन्म 28 जून,1921 को आंध्रप्रदेश के एक छोटे से गांव करीमनगर में हुआ था। उनके पिता का नाम पी. रंगा राव और माता का नाम रुक्मिनिअम्मा था। राव ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा करीमनगर जिले में एक रिश्तेदार के घर रहकर ग्रहण की। इसके पश्चात उन्होंने उस्मानिया विश्वविद्यालय से स्नातक करने के बाद नागपुर विश्वविद्यालय के अंतर्गत हिस्लोप कॉलेज से लॉ की पढ़ाई की। राव की मातृभाषा तेलुगु थी पर मराठी भाषा पर भी उनकी जोरदार पकड़ थी। आठ भारतीय भाषाओं (तेलुगु, तमिल, मराठी, हिंदी, संस्कृत, उड़िया, बंगाली और गुजराती) के अलावा वह अंग्रेजी, फ्रांसीसी, अरबी, स्पेनिश, जर्मन और पर्शियन बोलने में निपुण थे। भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान नरसिंह राव एक सक्रिय कार्यकर्ता थे।
आजादी के बाद राव कांग्रेस पार्टी में शामिल हो गए। राजनीति में आने के बाद राव ने पहले आंध्रप्रदेश और फिर बाद में केंद्र सरकार में कई महत्वपूर्ण विभागों का कार्यभार संभाला। आंध्रप्रदेश सरकार में राव- वर्ष 1962 से 1964 तक कानून एवं सूचना मंत्री रहे। वर्ष 1964 से 1967 तक कानून एवं विधि मंत्री रहे। वर्ष 1967 में स्वास्थ्य एवं चिकित्सा मंत्री रहे। वर्ष 1968 से 1971 तक शिक्षा मंत्री रहे। नरसिंह राव वर्ष 1971 से 1973 तक आंध्रप्रदेश के मुख्यमंत्री भी रहे। वर्ष 1957 से लेकर वर्ष 1977 तक नरसिंह राव आंध्रप्रदेश विधानसभा के सदस्य रहे और वर्ष 1977 से 1984 तक वे लोकसभा के सदस्य भी रहे और फिर राव दिसंबर 1984 में रामटेक सीट से आठवीं लोकसभा के लिए चुने गए। नरसिंह राव 14 जनवरी 1980 से 18 जुलाई 1984 तक विदेश मंत्री रहे। 19 जुलाई 1984 से 31 दिसंबर 1984 तक गृह मंत्री रहे। 31 दिसंबर 1984 से 25 सितंबर 1985 तक भारत के रक्षा मंत्री रहे।
वर्ष 1991 के आस-पास राव ने सक्रिय राजनीति से लगभग सन्यास सा ले लिया था पर राजीव गांधी की हत्या के बाद उनकी किस्मत पलटी और वह एकाएक भारतीय राजनीति के केंद्र बिंदु बन गए। इसके बाद नरसिंह राव को अल्पमत सरकार चलाने की जिम्मेदारी सौंपी गई। इस प्रकार राव नेहरू-गांधी परिवार के बाहर पहले ऐसे व्यक्ति थे जिन्होंने पूरे 5 साल प्रधानमंत्री के रूप में कार्य किया। राव ने परंपरा से हटकर एक गैर-राजनैतिक मनमोहन सिंह को देश का वित्त मंत्री बनाया। उन्होंने विपक्षी दल के सुब्रमण्यम स्वामी को “श्रमिक मापदंड और अंतरराष्ट्रीय व्यापार“ आयोग का अध्यक्ष बनाया। यह भारतीय राजनीति के इतिहास में पहला अवसर था जब विपक्ष के किसी सदस्य को कैबिनेट स्तर का पद दिया गया हो। नरसिंह राव ने विदेशी निवेश, पूंजी बाजार, मौजूदा व्यापार व्यवस्था और घरेलू व्यापार के क्षेत्र में सुधार लागू किए। उनके आर्थिक सुधारों का ही नतीजा था कि देश में विदेशी निवेश बहुत तेजी से बढ़ा।
वर्ष 1998 में मिसाइल और परमाणु कार्यक्रम को गति मिली जिसके परिणाम स्वरूप वाजपेई सरकार परमाणु परीक्षण करने में सफल रही। नरसिंह राव ने पंजाब में आतंकवाद और आतंकवादियों द्वारा अपहरण की घटनाओं का सामना प्रभावशाली तरीके से किया।नरसिंह राव ने विदेश नीति के क्षेत्र में पश्चिमी यूरोप, चीन और अमेरिका से संबंध सुधारने की दिशा में प्रयास किया और भारत- इजराइल संबंध को एक नई दिशा दी। इसी दौरान इसराइल ने भारत की राजधानी दिल्ली में अपनी एंबेसी खोली। नरसिंह राव ने “लुक ईस्ट“ नीति की शुरुआत की जिसके परिणाम स्वरूप दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों से भारत की निकटता बढ़ी।
6 दिसंबर 1992 में उत्तर प्रदेश के अयोध्या शहर में स्थित बाबरी मस्जिद को हजारों लोगों की एक भीड़ ने ढा दिया। हिंदू मान्यता के अनुसार इस जगह भगवान राम का जन्म हुआ था। इस घटना के बाद में कई स्थानों पर दंगे हुए जिसमें हजारों लोग मारे गए। राव पर अपनी अल्पमत सरकार को रिश्वत देकर बचाने का आरोप लगा और निचली अदालत ने उन्हें दोषी मानते हुए वर्ष 2001 में 3 साल की सजा सुनाई पर हाईकोर्ट ने उन्हें बरी कर दिया। 9 दिसंबर 2004 में राव को दिल का दौरा पड़ा जिसके बाद उन्हें नई दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान में भर्ती कराया गया। 23 दिसंबर 2004 को उन्होंने अंतिम सांसे ली। राव जी का राजनैतिक जीवन बहुत कठिन रहा परंतु प्रधानमंत्री बनने के बाद इन्होंने आर्थिक क्षेत्र में जो परिवर्तन किए थे, वे सराहनीय थे, जिसे बाद के सभी प्रधानमंत्री ने स्वीकार किया।