आज हम सब एक आजाद भारत में सांस ले रहे हैं और इस भारत को आजाद कराया हमारे देश के महान क्रांतिकारियों ने। भारत को गुलामी की बेड़ियों से आजाद कराने में एक–दो नहीं बल्कि हजारों लोगों ने अपनी जान तक दाव पर लगाई और तब जाकर अंग्रेजों के जुल्म से हमें 15 अगस्त 1947 को आजादी मिली थी। हालांकि एक समय हर भारतीयों के मन में अंग्रेजों से स्वतंत्रता पाने की चाह तो थी लेकिन उस समय कोई भी खुलकर अंग्रेजों के तानाशाही का विरोध नहीं कर पा रहा था और ऐसे में भारत की आजादी के लिए आवाज उठाने का काम किया भारत के स्वतंत्रता संग्राम के पहले योद्धा कहे जाने वाले मंगल पांडे ने, जो कि पहले तो East India Company के Bengal native infantry में एक सिपाही थे, लेकिन बाद में वह उस समय के सबसे महान क्रांतिकारी बनने में कामयाब रहे।
आज हम जानेंगे मंगल पांडे के जीवन के बारे में, साथ ही साथ अंग्रेजों से जंग की वह कहानी जिसने उन्हें एक सच्चे देशभक्तों की गिनती में ला खड़ा किया।
मंगल पांडे का जन्म 19 जुलाई 1831 को उत्तरप्रदेश के बलिया जिले के नगवा नामक गांव में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। इनके पिता का नाम सुदिष्ट पांडे और माता का नाम जानकी देवी था।
1857 का विद्रोह –
भारत में अंग्रेजों के जुल्म बढ़ते ही जा रहे थे, जिसके कारण सभी भारतीय बहुत ही परेशान थे और अंग्रेजों के जुल्म से आजादी पाना चाहते थे। मंगल पांडे बंगाल की जिस सेना में थे, उसी सेना में एक नई राइफल को लाया गया। इस नई राइफल का नाम एनफील्ड 53 था। इस राइफल में कारतूस भरने के लिए कारतूस को मुंह से खोलना पड़ता था और उस समय ऐसी अफवाह उड़ी थी कि कारतूस में गाय और सूअर की चर्बी का इस्तेमाल किया जाता है। यह बात पता चलते ही पूरी सेना में हलचल मच गई और सभी को लगा कि अंग्रेजों ने हिंदू – मुस्लिम के बीच विद्रोह पैदा करने के लिए ऐसा किया है। सभी हिंदुओं को ऐसा लग रहा था कि अंग्रेज उनका धर्म भ्रष्ट कर रहे हैं क्योंकि हिंदुओं के लिए गाय उनकी माता के समान होती हैं जिनकी वह पूजा करते हैं। इस हरकत से सभी भारतीय सेना के अंदर अंग्रेजो के खिलाफ विद्रोह की भावना जाग उठी थी।
9 फरवरी 1857 को इस राइफल को भारतीय सेना में बांटा गया, और सभी को इस राइफल को चलाने की ट्रेनिंग दी जा रही थी। इस ट्रेनिंग के दौरान ही जब अंग्रेज अफसर ने इसे मुंह से लगाकर बताया तभी मंगल पांडे ने ऐसा करने से मना कर दिया। मंगल पांडे के ऐसा करने पर उन्हें अंग्रेज अफसर के गुस्से का सामना भी करना पड़ा। इस घटना के बाद मंगल पांडे को सेना से निकालने का फैसला लिया गया। 29 मार्च 1857 को मंगल पांडे की वर्दी और राइफल वापस लेने का फैसला सुनाया गया। उस दौरान मंगल पांडे ने अपने साथियों से भी मदद मांगी, लेकिन अंग्रेजों के डर से कोई भी आगे नहीं आया। एक अफसर जनरल हेअरसेय उनकी तरफ बढ़े लेकिन मंगल पांडे ने अवसर पर गोली चला दी और साथ में अफसर के एक बेटे बॉब जो सेना में ही था, उस पर भी गोली चला दी। इसके बाद मंगल पांडे ने अपने ऊपर भी गोली चलाने की कोशिश की लेकिन ब्रिटिश अफसरों ने मंगल पांडे को गोली चलाने से रोका, जिसके कारण मंगल पांडे के पैर में गोली लग गई।
मंगल पांडे को हुई फांसी–
इस घटना के बाद पूरी अंग्रेज सरकार हिल गई। मंगल पांडे को हिरासत में रखा गया जहां पर उन्हें ठीक होने में एक हफ्ता लगा। ऐसा माना गया था कि मंगल पांडे को कोई दवाई दी गई थी, जिसकी वजह से उन्होंने यह सारा कारनामा किया। लेकिन मंगल पांडे ने इस बात से इंकार कर दिया और कहा कि किसी ने उन्हें कोई दवाई नहीं दी थी, न ही किसी के कहने पर या किसी के दबाव में आकर उन्होंने यह काम किया। मंगल पांडे को कोर्ट मार्शल करने का फैसला सुनाया गया। 6 अप्रैल 1857 को यह फैसला लिया गया कि 18 अप्रैल 1857 को मंगल पांडे को फांसी दी जाएगी। इस बीच ब्रिटिश अफसर को मंगल पांडे का डर बैठ गया था। वह मंगल पांडे को जल्द से जल्द खत्म कर देना चाहते थे, इसलिए ब्रिटिश अफसर ने 18 अप्रैल 1857 की जगह 10 दिन पहले 8 अप्रैल 1857 को ही मंगल पांडे को फांसी पर लटका दिया। अंग्रेज अफसर के अंदर मंगल पांडे की मौत के बाद भी खौफ था जिसकी वजह से वह मंगल पांडे की लाश के पास जाने से कतरा रहे थे। मंगल पांडे की मौत के 1 महीने बाद ही 10 मई 1857 को उत्तर प्रदेश की एक सेना से इस घटना के विद्रोह में बहुत से लोग सामने आए और वे सभी लोग कारतूस राइफल के उपयोग का विरोध प्रदर्शन करने लगे। धीरे–धीरे यह विद्रोह विकराल रूप लेने लगा था। इस विद्रोह (जिसे भारत का पहला स्वतंत्रता संग्राम भी कहा जाता है) में सैनिकों समेत राजा, किसान और मजदूर भी शामिल हुए और अंग्रेजी हुकूमत को करारा झटका दिया। इस विद्रोह ने अंग्रेजों को स्पष्ट संदेश दे दिया कि अब भारत पर राज्य करना इतना आसान नहीं है जितना वे समझ रहे थे।