“तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा“
ऐसे उच्च विचार रखने वाले नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने अकेले दम पर भारत को आजाद कराने के लिए कई महत्वपूर्ण प्रयास किए, जिसे कोई दूसरा क्रांतिकारी सोच भी नहीं सकता था। सुभाष चंद्र बोस एक ऐसे भारत के क्रांतिवीर सपूत थे, जिन्होंने भारत की जमी से अपने अभियान का प्रयास करते हुए पूरे विश्वभर को अपना युद्ध अभ्यास का अखाड़ा बना दिया।
प्रारंभिक जीवन –
सुभाष चंद्र बोस का जन्म 23
जनवरी 1907 में उड़ीसा के कटक शहर के धनी बंगाली परिवार में हुआ था। उनके पिता जानकीनाथ बोस, कटक शहर के मशहूर वकील थे और माता प्रभावती, एक हाउसवाइफ थी। सुभाष चंद्र बोस के माता पिता की 14 संतानें थी जिसमें 8 बेटे और 6 बेटियां थी। सुभाष चंद्र बोस उनकी नौवीं संतान और पांचवें बेटे थे। सुभाष चंद्र बचपन से ही पढ़ने में होनहार थे। उन्होंने दसवीं की परीक्षा में प्रथम स्थान प्राप्त किया था और कॉलेज में भी वह प्रथम आए थे।सुभाष चंद्र ने कोलकाता के स्कॉटिश चर्च कॉलेज से स्नातक की डिग्री हासिल की थी।
वर्ष 1919 में, सुभाष चंद्र के माता–पिता ने इंडियन सिविल सर्विस की तैयारी करने के लिए उन्हें इंग्लैंड के कैंब्रिज यूनिवर्सिटी भेज दिया। उन दिनों अंग्रेजों के शासन काल में भारतीयों का सिविल सर्विस में जाना बेहद कठिन होता था, फिर भी सुभाष चंद्र ने उस परीक्षा में चौथा स्थान प्राप्त किया।
सुभाष चंद्र बोस का राजनीतिक प्रयास –
वर्ष 1921 में, भारत में क्रांतिकारी और राजनीतिक गतिविधियां तेजी से बढ़ रही थी जिससे प्रभावी होकर सुभाष चंद्र ने सिविल सेवा में जाने के निर्णय को त्याग दिया और भारत लौट आए। भारत वापस आने के बाद सुभाष चंद्र भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी से जुड़ गए। इस पार्टी में गांधीजी का बहुत प्रभाव था क्योंकि गांधीजी उदारवादी विचारों के थे। जबकि सुभाष चंद्र क्रांतिकारी विचार के थे इसलिए वे गांधीजी के विचारों से सहमत नहीं होते थे। अपनी सूझबूझ और मेहनत से सुभाष चंद्र बहुत जल्द ही कांग्रेस के मुख्य नेताओं में शामिल हो गए। वर्ष 1938 में, सुभाष चंद्र ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष पद का चुनाव जीता और राष्ट्रीय योजना आयोग का गठन किया।
सुभाष चंद्र का विदेशी जमी से प्रयास –
वर्ष 1939 में, सुभाष चंद्र ने अंग्रेजों द्वारा भारत के संसाधनों का द्वितीय विश्व युद्ध में उपयोग करने का घोर विरोध किया और इसके खिलाफ जन आंदोलन शुरू किया। उनके इस आंदोलन को जनता का जबरदस्त समर्थन मिल रहा था इसलिए सुभाष चंद्र को कोलकाता में कैद कर नजरबंद रखा गया।
जनवरी 1941 में, सुभाष चंद्र अपने घर से भागने में सफल हो गए और अफगानिस्तान के रास्ते जर्मनी पहुंच गए। ब्रिटिश राज को भारत से निकालने के लिए सुभाष चंद्र ने जर्मनी और जापान से मदद मांगी। जनवरी 1942 में, सुभाष चंद्र ने रेडियो बर्लिन से प्रसारण करना शुरू किया जिससे कि भारत के लोगों में उत्साह बढ़ने लगा। वर्ष 1943 में, सुभाष चंद्र ने जर्मनी छोड़ दिया और जापान होते हुए सिंगापुर पहुंच गए।
सुभाष चंद्र और आजाद हिंद फौज –
वर्ष 1943 में, पूर्वी एशिया पहुंचकर उन्होंने रास बिहारी बोस से “स्वतंत्रता आंदोलन“ का कमान लिया और “आजाद हिंद फौज“ की स्थापना करके युद्ध की तैयारी प्रारंभ कर दी। “आजाद हिंद फौज“ की स्थापना जापानी सेना द्वारा अंग्रेजी फौज के पकड़े हुए भारतीय युद्धबंदियों को लेकर किया गया था। इसके बाद सुभाष चंद्र को “नेताजी“ कहा जाने लगा। “आजाद हिंद फौज“ भारत की ओर बढ़ने लगी और सबसे पहले अंडमान और निकोबार को आजाद किया। सुभाष चंद्र “आजाद हिंद फौज“ के साथ 4 जुलाई 1944 को बर्मा पहुंचे और यहीं पर उन्होंने अपना प्रसिद्ध नारा “तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा“ दिया।
सुभाष चंद्र बोस की मृत्यु –
18 अगस्त 1945 को टोक्यो जाते समय ताइवान के पास नेताजी की मौत हवाई दुर्घटना में हो गई परंतु उनका शव नहीं मिल पाया। सुभाष चंद्र की मृत्यु आज भी विवाद का विषय है और भारतीय इतिहास में सबसे बड़ा संशय है।