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Biography of Bhimrao Ambedkar in Hindi

Bhim rao


मैं उस धर्म को पसंद करता हूं, जो स्वतंत्रता, समानता और भाईचारे की भावना सिखाता है।” 

ऐसा कहना था स्वतंत्र भारत के प्रथम कानून एवं न्यायमंत्री भीमराव अंबेडकर जी का जो भारतीय संविधान के जनक एवं भारत गणराज्य के निर्माताओं में से एक थे। इन्होंने श्रमिकों, किसानों और महिलाओं के अधिकारों का समर्थन भी किया था।

प्रारंभिक जीवन

भीमराव अंबेडकर का जन्म 14
अप्रैल 1891 को मध्यप्रदेश स्थित महू नगर में हुआ था। उनके पिता का नाम रामजी मालोजी सकपाल एवं माता का नाम भीमाबाई था। भीमराव अंबेडकर अपने मातापिता के 14वीं  अंतिम संतान थे। उनका परिवार कबीर पंथ में विश्वास रखता था। उनके पिता रामजी सतपाल, भारतीय सेना की महू छावनी में कार्य करते थे। प्रारंभिक जीवन में पढ़ाई करते हुए अपनी जाति के कारण उन्हें सामाजिक प्रतिरोध का सामना करना पड़ा। भीमराव अंबेडकर के बचपन का नाम “भिवा था। वर्ष 1897 में, रामजी सकपाल अपने परिवार के साथ मुंबई गए। अप्रैल 1906 में, 15 वर्ष की आयु में भीमराव की शादी 9 वर्ष की लड़की रमाबाई से हो गई। तब भीमराव पांचवी अंग्रेजी कक्षा में पढ़ रहे थे। उन दिनों भारत में बाल विवाह का प्रचलन था।

प्राथमिक शिक्षा

भीमराव अंबेडकर ने 7 नवंबर 1900 को, अंग्रेजी की पहली कक्षा में प्रवेश लिया और इसी दिन से भीमराव ने अपने जीवन में शिक्षा की शुरुआत की। यही वजह है कि “7 नवंबर को महाराष्ट्र में विद्यार्थी दिवस के रूप में मनाया जाता है। जब भीमराव अंग्रेजी की चौथी कक्षा की परीक्षा में उत्तीर्ण हुए तब उनकी इस सफलता को सार्वजनिक समारोह के रूप में मनाया गया और दादा केलुसकर द्वारा लिखी बुद्ध की जीवनी उन्हें परिवार की तरफ से भेंट में दी गई। इसे पढ़कर भीमराव ने पहली बार गौतम बुद्ध बौद्ध धर्म को जाना और उनकी शिक्षा से प्रभावित हुए।

माध्यमिक शिक्षा

वर्ष 1907 में, भीमराव ने अपनी मैट्रिक परीक्षा उत्तीर्ण की और उसके अगले वर्ष उन्होंने मुंबई विश्वविद्यालय के एल्फिंस्टन कॉलेज में दाखिला लिया। इस उच्च स्तर पर शिक्षा प्राप्त करने वाले अपने समुदाय के वे पहले व्यक्ति थे। वर्ष 1912 में, भीमराव ने मुंबई विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र और राजनीतिक विज्ञान में बी.. की डिग्री प्राप्त की और उसके बाद बड़ौदा राज्य सरकार के साथ काम करने लगे।

कोलंबिया विश्वविद्यालय में स्नातकोत्तर अध्ययन

वर्ष 1913 में, 22 वर्ष की उम्र में, अंबेडकर ने स्नातकोत्तर शिक्षा प्राप्त करने के लिए संयुक्त राज्य अमेरिका, न्यूयॉर्क के “कोलंबिया विश्वविद्यालय में दाखिला लिया। वहां बड़ौदा के गायकवाड़ द्वारा स्थापित एक योजना के अंतर्गत भीमराव को 3 वर्ष के लिए 11.50
डॉलर प्रति माह की छात्रवृत्ति प्रदान की गई थी। वर्ष 1915 जून में, उन्होंने अपनी स्नातकोत्तर (एम. .) परीक्षा उत्तीर्ण की। भीमराव ने स्नातकोत्तर के लिए प्राचीन भारतीय वाणिज्य” (एंशियंट इंडियन्स कॉमर्स) विषय पर शोध कार्य प्रस्तुत किया। वर्ष 1916 में, उन्होंने “नेशनल डिविडेंड ऑफ इंडिया हिस्टोरिक एंड एनालिटिकल स्टडी के लिए दूसरा शोध कार्य प्रस्तुत किया। वर्ष 1916 में, इवोल्युशन ओफ प्रोविन्शिअल फिनान्स इन ब्रिटिश इंडिया, अपने तीसरे शोध कार्य के लिए अर्थशास्त्र में पीएचडी प्राप्त की। भीमराव का पहला प्रकाशित पत्र था मानव विज्ञानी अलेक्जेंडर गोल्डनवेइज़र जिसमें भीमराव ने एक सेमिनार में भारत की प्रणाली, जातियां, उत्पत्ति और विकास नामक शोध पत्र प्रस्तुत किया। अमेरिका में, 3 वर्षों के लिए मिली छात्रवृत्ति का उपयोग भीमराव ने केवल 2 वर्षों में अपनी पढ़ाई पूरी करने में किया और वर्ष 1916 में, वे लंदन चले गए।

लंदन स्कूल ऑफ़ इकोनॉमिक्स में स्नातकोत्तर अध्ययन

वर्ष 1916 अक्टूबर में, भीमराव ने लंदन के ग्रेस इन् में बैरिस्टर कोर्स के लिए दाखिला लिया और साथ ही लंदन स्कूल ऑफ़ इकोनॉमिक्स में भी दाखिला लिया जहां पर उन्होंने अर्थशास्त्र की डॉक्टरेट थीसिस पर कार्य करना प्रारंभ किया। वर्ष 1917 जून में, भीमराव विवश होकर अपना अध्ययन अस्थाई तौर पर बीच में ही छोड़कर भारत लौट आए क्योंकि बड़ौदा राज्य से उनकी 3 वर्ष की छात्रवृत्ति समाप्त हो गई थी। अपने जीवन में अचानक फिर से आए भेदभाव से डॉ. भीमराव अंबेडकर निराश हो गए और अपनी नौकरी छोड़कर ट्यूटर और लेखाकार के रूप में कार्य करने लगे। एक अंग्रेज जानकार, मुंबई के पूर्व राज्यपाल लॉर्ड सिडनेम के कारण भीमराव को मुंबई के “सिडनेम कॉलेज ऑफ कॉमर्स एंड इकोनॉमिक्स में राजनीतिक अर्थव्यवस्था के प्रोसेसर की नौकरी मिल गई। वर्ष 1920 में, भीमराव अपने पारसी मित्र “कोल्हापुर के शाहू महाराज के सहयोग से वह एक बार फिर से लंदन वापस जाने में सफल रहे और वर्ष 1921 में, विज्ञान स्नातकोत्तर (एम.एससी.) प्राप्त की, जिसके लिए भीमराव ने प्रोवेन्शियल डीसेन्ट्रलाईज़ेशन ऑफ इम्पीरियल फायनेन्स इन ब्रिटिश इण्डिया” (ब्रिटिश भारत में शाही अर्थ व्यवस्था का प्रांतीय विकेंद्रीकरण) खोज ग्रन्थ प्रस्तुत किया। वर्ष 1922 में, अंबेडकर को लंदन के “ग्रेस इन् ने बैरिस्टरएटलॉज डिग्री प्रदान की और उन्हें ब्रिटिश बार में बैरिस्टर के रूप में प्रवेश मिल गया। वर्ष 1923 में, उन्होंने अर्थशास्त्र में डॉक्टर ऑफ साईंस (डी.एससी.) की उपाधि प्राप्त की। डॉ. भीमराव अंबेडकर की थीसिस “दी प्राब्लम आफ दि रुपी: इट्स ओरिजिन एंड इट्स सॉल्यूशन” (रुपये की समस्या: इसकी उत्पत्ति और इसका समाधान) पर थी। लंदन का अध्ययन पूरा करके भारत वापस लौटते हुए भीमराव 3 महीने के लिए जर्मनी में रुके, जहां उन्होंने अपना अर्थशास्त्र का अध्ययन, “बॉन विश्वविद्यालय में जारी रखा। परंतु समय की कमी के कारण वे विश्वविद्यालय में अधिक नहीं ठहर सकें। भीमराव की तीसरी और चौथी डॉक्टरेट्स (एलएल.डी., कोलंबिया विश्वविद्यालय, 1952 में  और डी.लिट., उस्मानिया विश्वविद्यालय, 1953 में ) सम्मानित उपाधियाँ थीं।

छुआछूत के विरुद्ध संघर्ष

भीमराव अंबेडकर ने कहा था “छुआछूत गुलामी से भी बदतर है। उन्हें महाराजा गायकवाड़ का सैन्य सचिव नियुक्त किया गया, परंतु जातिगत भेदभाव के कारण कुछ ही समय में उन्हें यह नौकरी छोड़नी पड़ी। भीमराव में इस घटना को अपनी आत्मकथा, वेटिंग फॉर वीजा में वर्णित किया। मुंबई उच्च न्यायालय में विधि का अभ्यास करते हुए भीमराव ने अछूतों की शिक्षा को बढ़ावा देने और उन्हें ऊपर उठाने के प्रयास किए। भीमराव ने दलित अधिकारों की रक्षा के लिए पांच पत्रिकाएं निकाली। जैसे मूकनायक, समता, जनता, बहिष्कृत और प्रबुद्ध भारत। वर्ष 1927 तक, डॉ. अंबेडकर ने छुआछूत के विरुद्ध एक सक्रिय आंदोलन आरंभ करने का निर्णय लिया। उन्होंने सार्वजनिक आंदोलन, सत्याग्रह और जलूस के द्वारा सभी वर्गों के लिए अछूतों को भी हिंदू मंदिरों में प्रवेश करने का अधिकार दिलाने के लिए संघर्ष किया। वर्ष 1927 के अंत में एक सम्मेलन में, भीमराव ने छुआछूत और “जाति भेदभाव को वैचारिक रूप से न्यायसंगत बनाने के लिए प्राचीन हिंदू पाठ मनुस्मृति की सार्वजनिक रूप से निंदा की और उन्होंने औपचारिक रूप से प्राचीन पाठ की प्रतियां जलाई। 25
दिसंबर 1927 को, भीमराव ने हजारों अनुयायियों के नेतृत्व में मनुस्मृति की प्रतियों को जलाया। इस की स्मृति में प्रति वर्ष “25 दिसंबर को “मनुस्मृति दहन दिवस के रूप में अंबेडकरवादियों और हिंदू दलितों द्वारा मनाया जाता है। वर्ष 1930 में, भीमराव ने 3 महीने की तैयारी के बाद कालाराम मंदिर सत्याग्रह आरंभ किया।

पूना पैक्ट 

अब तक डॉ. भीमराव अंबेडकर सबसे बड़ी अछूत राजनीतिक हस्ती बन चुके थे। भीमराव ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस और महात्मा गांधी की आलोचना की। उन्होंने उन पर अछूत समुदाय को एक करुणा के रूप में प्रस्तुत करने का आरोप लगाया। भीमराव ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस और महात्मा गांधी द्वारा चलाए गए नमक सत्याग्रह की आलोचना की। धर्म और जाति के आधार पर गांधी ने आशंका जताई कि अछूतों को दी गई पृथक निर्वाचिका, हिंदू समाज को विभाजित कर देगी। गांधी को लगता था कि, सवर्णों को छुआछूत भुलाने के लिए उन्हें कुछ वर्षों की अवधि दी जानी चाहिए परंतु उनका यह तर्क गलत सिद्ध हुआ और छुआछूत का नियमित पालन होता रहा। वर्ष 1932 में, ब्रिटिशों ने भीमराव के विचारों के साथ सहमति व्यक्त करते हुए अछूतों को पृथक निर्वाचिका देने की घोषणा की। गांधी इस समय पूना की येरवडा जेल में थे। देश में बढ़ते दबाव को देख अंबेडकर 24
सितंबर 1932 को, शाम 5 बजे येरवडा जेल पहुंचे। जेल में अंबेडकर और गांधी के बीच समझौता हुआ, जो बाद में “पूना पैक्ट के नाम से जाना गया। इस समझौते में अंबेडकर ने दलितों को कम्यूनल अवॉर्ड में मिले पृथक निर्वाचन के अधिकार को छोड़ने की घोषणा की। वर्ष 1942 में, भीमराव ने इस समझौते का धिक्कार किया और “स्टेट ऑफ मायनॉरिटी इस ग्रंथ में भी पूना पैक्ट संबंधी नाराजगी व्यक्त की।

राजनीतिक जीवन

डॉ. भीमराव अंबेडकर का राजनीतिक कैरियर वर्ष 1926 में शुरू हुआ और वर्ष 1956 तक वह राजनीतिक क्षेत्र में विभिन्न पदों पर रहे। वर्ष 1926 में, मुंबई के गवर्नर ने भीमराव को मुंबई विधान परिषद के सदस्य के रूप में नियुक्त किया। भीमराव ने अपने कर्तव्यों को गंभीरता से लिया और आर्थिक मामलों पर भाषण दिए। वर्ष 1935 में, अंबेडकर को लॉ कॉलेज का प्रधानाचार्य नियुक्त किया गया और इस पद पर भीमराव ने 2 वर्ष तक कार्य किया। इसी वर्ष 27 मई 1935 को, उनकी पत्नी रमाबाई की एक लंबी बीमारी के कारण मृत्यु हो गई। वर्ष 1936 में, अंबेडकर ने “स्वतंत्र लेबर पार्टी की स्थापना की। इसी वर्ष 15 मई 1936 को, अंबेडकर ने अपनी पुस्तक “एनीहिलेशन ऑफ कास्ट” (जाति प्रथा का विनाश) प्रकाशित की जो उनके न्यूयॉर्क में लिखें एक शोधपत्र पर आधारित थी। इस पुस्तक में भीमराव ने जाति व्यवस्था और हिंदू धार्मिक नेताओं की आलोचना की। वर्ष 1942 में, भीमराव ने “ऑल इंडिया शेड्यूल्ड कास्ट्स फेडरेशन की स्थापना की। यह एक सामाजिकराजनीतिक संगठन था जिसमें दलित समुदाय के अधिकारों के लिए अभियान चलाया गया। वर्ष 1942 से वर्ष 1946 के दौरान, भीमराव रक्षा सलाहकार समिति और वॉइसराय की कार्यकारी परिषद में  श्रम मंत्री के रूप में सेवारत रहे। अंबेडकर ने भारत की आजादी की लड़ाई में सक्रिय रूप से हिस्सा लिया था। वर्ष 1952 में, भीमराव राज्यसभा के सदस्य बन गए। राज्यसभा सदस्य के रूप में उनका पहला कार्यकाल 3 अप्रैल 1952 से 2 अप्रैल 1956 के बीच था और दूसरा कार्यकाल 3 अप्रैल 1956 से 2 अप्रैल 1962 तक आयोजित किया जाना था लेकिन कार्यकाल समाप्त होने से पहले 6 दिसंबर 1956 को भीमराव का निधन हो गया।

धर्म परिवर्तन की घोषणा

10-12 साल हिंदू धर्म के अंतर्गत रहते हुए डॉ. भीमराव अंबेडकर ने हिंदू धर्म तथा हिंदू समाज सुधारने और सम्मान प्राप्त कराने के लिए तमाम प्रयत्न किए परंतु हिंदुओं का हृदय परिवर्तन हुआ। हिंदू समाज का यह कहना था कि “मनुष्य धर्म के लिए है जबकि अंबेडकर का मानना था कि धर्म मनुष्य के लिए है 13
अक्टूबर 1935 को, नासिक के निकट येवला में एक सम्मेलन में अंबेडकर ने धर्म परिवर्तन करने की घोषणा की। इस धर्म परिवर्तन की घोषणा के बाद इस्लाम धर्म के निज़ाम से लेकर कई ईसाई मिशनरियों ने उन्हें करोड़ों रुपए का प्रलोभन भी दिया पर भीमराव ने सभी को ठुकरा दिया। भीमराव किसी भी हाल में ऐसे धर्म को नहीं अपनाना चाहते थे जो छुआछूत की बीमारी से जकड़ा हो और ना ही वो ऐसा धर्म चुनना चाहते थे जिसमें अंधविश्वास तथा पाखंडवाद हो। अंबेडकर ने धर्म परिवर्तन की घोषणा के बाद 21 वर्ष तक विश्व के सभी प्रमुख धर्मों का गहन अध्ययन किया। अंबेडकर बौद्ध धर्म को पसंद करते थे। बौद्ध धर्म प्रज्ञा, करुणा और समानता की शिक्षा देता है। भीमराव का कहना था धर्म का कार्य विश्व का पुनर्निर्माण करना होना चाहिए ना कि उसकी उत्पत्ति और अंत की व्याख्या करना।

संविधान निर्माण

29 अगस्त 1947 को, अंबेडकर को स्वतंत्र भारत के नए संविधान की रचना के लिए मसौदा समिति का अध्यक्ष बनाया गया। अंबेडकर एक बुद्धिमान संविधान विशेषज्ञ थे। उन्होंने लगभग 60 देशों के संविधानों का अध्ययन किया था। अंबेडकर को भारत के संविधान का पिता के रूप में मान्यता प्राप्त है। अंबेडकर ने महिलाओं के लिए व्यापक आर्थिक और सामाजिक अधिकारों के लिए तर्क दिए और अनुसूचित जातियों (एससी) और अनुसूचित जनजातियों (एसटी) और अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के सदस्यों के लिए नागरिक सेवाओं, स्कूलों और कॉलेजों में नौकरियों के आरक्षण की व्यवस्था शुरू करने के लिए असेंबली का समर्थन जीता। 26
नवंबर 1949 में, संविधान सभा द्वारा इस संविधान को अपनाया गया।

आर्थिक नियोजन

अंबेडकर विदेश से अर्थशास्त्र में डॉक्टरेट की डिग्री लेने वाले पहले भारतीय थे। भीमराव ने राष्ट्रीय आर्थिक और सामाजिक विकास की वकालत की और सार्वजनिक स्वच्छता, शिक्षा, समुदाय स्वास्थ्य को बुनियादी सुविधाओं के रूप में जोर दिया। अंबेडकर को एक अर्थशास्त्री के तौर पर प्रशिक्षित किया गया और वर्ष 1921 तक वे एक पेशेवर अर्थशास्त्री बन चुके थे। भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई), भीमराव के विचारों पर आधारित था, जो उन्होंने हिल्टन यंग कमीशन को प्रस्तुत किए थे।

दूसरा विवाह

भीमराव की पहली पत्नी रमाबाई की लंबी बीमारी के कारण वर्ष 1935 में मृत्यु हो गई। वर्ष 1940 के अंत में, भारतीय संविधान को पूरा करने के बाद भीमराव नीन्द के अभाव से पीड़ित थे, उनके पैरों में न्यूरोपैथिक दर्द था। वह इंसुलिन और होम्योपैथिक दवाई ले रहे थे। भीमराव उपचार के लिए मुंबई गए और वहां डॉ. शारदा कबीर से मिले, जिसके साथ उन्होंने 15 अप्रैल 1948 को, नई दिल्ली में अपने घर पर विवाह किया। डॉ. शारदा कबीर ने विवाह के पश्चात सविता अंबेडकर नाम अपनाया और उनके बाकी जीवन में उनकी देखभाल की।

निधन

वर्ष 1948 से भीमराव मधुमेह से पीड़ित थे। वर्ष 1954 में, जून से अक्टूबर तक वह बहुत बीमार रहे। राजनीतिक मुद्दों से परेशान अंबेडकर का स्वास्थ्य खराब होता चला गया। भगवान बुद्ध और उनके धर्म को पूरा करने के 3 दिन के बाद “6 दिसंबर
1956″
 को अंबेडकर का महापरिनिर्वाण नींद में दिल्ली के घर में निधन हो गया। दिल्ली से विशेष विमान द्वारा उनका पार्थिव मुंबई में उनके घर राजगृह में लाया गया। 7 दिसंबर को, मुंबई में दादर चौपाटी समुद्र तट पर बौद्ध शैली में अंतिम संस्कार किया गया जिसमें उनके लाखों समर्थकों, प्रशंसकों और कार्यकर्ताओं ने भाग लिया।

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