Biography of Gopal Krishna Gokhale in Hindi
आइए जानते हैं गोपाल कृष्ण गोखले के बारे में-
गोपाल कृष्ण गोखले भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन के मार्गदर्शकों में से एक थे। इनका जन्म 9 मई 1866 को महाराष्ट्र के कोथापुर में हुआ था। गोपाल कृष्ण गोखले के पिता का नाम कृष्ण राव और माता का नाम वालूबाई था। गोपाल कृष्ण गोखले भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के वरिष्ठ नेता थे। राजनैतिक नेता होने के अलावा वह एक समाज सुधारक भी थे। देश की आजादी और राष्ट्रीय निर्माण में गोपाल कृष्ण गोखले का योगदान अमूल्य था। गोपाल कृष्ण गोखले ने अपने बड़े भाई द्वारा आर्थिक सहायता से कोथापुर के राजाराम हाई स्कूल में अपनी प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त की। बाद में वह मुंबई चले गए और 1884 में 18 साल की उम्र में मुंबई के एलफिंस्टन कॉलेज से स्नातक की डिग्री प्राप्त की।
गोपाल कृष्ण गोखले उस समय के किसी भी भारतीय द्वारा पहली बार कॉलेज की शिक्षा प्राप्त करने वाले चंद लोगों में से एक थे। गोखले शिक्षा के महत्व को भलीभांति समझते थे। उनको अंग्रेजी भाषा का अच्छा ज्ञान था जिसके कारण वह बिना किसी हिचकिचाहट और अत्यंत स्पष्टता के साथ अपने आप को अभिव्यक्त कर पाते थे। इतिहास के ज्ञान और उनकी समझ ने उन्हें स्वतंत्रता, लोकतंत्र और संसदीय प्रणाली को समझने में मदद की। वर्ष 1885 में गोखले पुणे चले गए और डेक्कन एजुकेशन सोसाइटी के सहयोगियों के साथ फर्ग्युसन कॉलेज के संस्थापक सदस्यों में शामिल हुए। गोपाल कृष्ण गोखले ने फर्ग्युसन कॉलेज को अपने जीवन के करीब दो दशक दिए और कॉलेज के प्रधानाचार्य बने।
गोपाल कृष्ण गोखले ने 1886 में 20 साल की उम्र में सामाजिक जीवन में प्रवेश किया। गोखले ने बाल गंगाधर तिलक की साप्ताहिक पत्रिका "मराठा" के लिए नियमित रूप से लेख लिखें। अपने लेख के माध्यम से उन्होंने लोगों के अंदर छिपी हुई देशभक्ति को जगाने की कोशिश की। वर्ष 1894 में जब भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने पुणे में अपने सत्र का आयोजन किया तब उन्हें स्वागत समिति का सचिव बनाया गया। गोपाल कृष्ण गोखले ने 1905 में "सर्वेंट्स ऑफ इंडिया सोसाइटी" नामक एक नई समिति की शुरुआत की। इस समिति ने कार्यकर्ताओं को देश की सेवा के लिए प्रशिक्षित किया। गोखले ने भारत में मूलभूत रूप से स्वराज या शासन पाने के लिए नियमित सुधार की वकालत की। उन्होंने 1909 के "मोर्ले मिंटो सुधारो" के प्रस्तुतीकरण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई जो अंत में एक कानून बन गया। गोपाल कृष्ण गोखले मधुमेह और दमा के मरीज थे और अत्यधिक बोलने से गोखले के स्वास्थ्य पर इसका प्रतिकूल असर पड़ा और अंत में 19 फरवरी 1915 को उनकी मृत्यु हो गई।