Biography of Bankim Chandra Chatterjee in Hindi
"वंदे मातरम" इस भारतीय राष्ट्रगीत को सालों पहले "बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय" द्वारा ही लिखा गया था।
बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय भारत देश के एक महान लेखक, कवि और पत्रकार थे। इनका नाम "बंकिम चंद्र चटर्जी" भी था। बंकिम चंद्र जी ने 18वीं शताब्दी में ही "वंदे मातरम" की रचना की थी लेकिन वर्ष 1937 में "वंदे मातरम" को राष्ट्रीय गीत का दर्जा मिला। बंगाली भाषा में लिखा गया यह गीत आज भी लोगों के अंदर देशभक्ति को तरोताजा कर देता है।
बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय का जन्म 27 जून 1838 को बंगाल के परगना जिले के कांठलपाड़ा नामक गांव में एक संपन्न परिवार में हुआ था। इनके पिता सरकारी नौकरी में थे जो बाद में बंगाल के मिदनापुर के उप कलेक्टर बन गए। बंकिम चंद्र जी ने अपनी स्कूली शिक्षा मिदनापुर के सरकारी स्कूल से की थी। बंकिम चंद्र जी को बचपन से ही पढ़ने-लिखने में रुचि थी। स्कूल के दिनों में ही इन्होंने पहली बार कविता लिखी थी। बंकिम चंद्र जी को इंग्लिश भाषा से ज्यादा संस्कृत में रुचि थी। बंकिम चंद्र जी पढ़ाई के साथ-साथ खेलकूद में भी आगे थे। कॉलेज की पढ़ाई बंकिम चंद्र जी ने हुगली मोहसिन कॉलेज से की थी फिर उसके बाद वे प्रेसिडेंसी कॉलेज गए, जहां से उन्होंने आर्ट्स विषय में वर्ष 1858 में स्नातक किया। प्रेसिडेंसी कॉलेज से बी.ए. की उपाधि लेने वाले बंकिम चंद्र जी पहले भारतीय थे। बंकिम चंद्र जी ने कानून की परीक्षा पास कर, इसकी डिग्री भी हासिल की। कानून की पढ़ाई पूरी करने के बाद बंकिम चंद्र जी को सरकारी नौकरी मिल गई और पिता की तरह ही उन्हें भी बंगाल के एक जिले का उप कलेक्टर बना दिया गया।
कुछ समय बाद उनके काम को देखते हुए ब्रिटिश सरकार ने बंकिम चंद्र जी को 'उप मजिस्ट्रेट' पद पर नियुक्त कर दिया। बंकिम चंद्र जी ने लगभग 30 साल तक अंग्रेजों के शासन में काम किया। वर्ष 1891 में बंकिम चंद्र जी ने ब्रिटिश सरकारी सेवा से रिटायर होने का निर्णय लिया और नौकरी छोड़ दी। वर्ष 1857 की लड़ाई के बाद भारत देश की शासन प्रणाली पूरी तरह बदल गई थी। ईस्ट इंडिया कंपनी की हार के बाद भारत देश अब ब्रिटेन की महारानी विक्टोरिया के अंदर आ गया था। बंकिम चंद्र जी उस समय सरकारी नौकरी में थे, जिसके कारण वे खुलकर अंग्रेजो के खिलाफ आंदोलन का हिस्सा नहीं बन सके लेकिन अंग्रेजों के प्रति क्रोध उनके अंदर बढ़ता ही जा रहा था, जिसे बंकिम चंद्र जी ने अपनी कलम के द्वारा सभी लोगों तक पहुंचाने का रास्ता निकाला। बंकिम चंद्र जी ने सबसे पहले ईश्वर चंद्र गुप्ता के साथ प्रकाशन का काम शुरू किया था। वे इनके सप्ताहिक समाचार पत्र "संगबा प्रभाकर" में लिखा करते थे। ईश्वर चंद्र गुप्ता के रास्ते पर चलते हुए बंकिम चंद्र जी ने भी कविता लेखन के द्वारा अपनी साहित्यिक यात्रा शुरू की। लेकिन बाद में जब उनकी अंदर लेखन की क्षमता का विकास हुआ तो उन्होंने कथा, कहानी और उपन्यास लिखने की तरफ अपना ध्यान किया।
बंकिम चंद्र जी का पहला उपन्यास "राजमोहन की पत्नी" इंग्लिश भाषा में प्रकाशित हुआ था। अंग्रेजी में प्रकाशित होने के कारण इस उपन्यास को ज्यादा पसंद नहीं किया गया क्योंकि उस समय भारत में अंग्रेजी को समझने वाले बहुत कम ही लोग हुआ करते थे। इसके बाद बंकिम चंद्र जी ने सोचा बंगाल की आम जनता तक अपनी बात पहुंचाने के लिए, उन्हें वहां की क्षेत्रीय भाषा में लेख लिखना होगा।
वर्ष 1865 में बंकिम चंद्र जी ने बंगाली भाषा में अपना पहला उपन्यास "दुर्गेशनंदिनी" लिखा और प्रकाशित किया। यह बंगाली उपन्यास के प्रेम कहानी पर आधारित था। इसके बाद उनका बड़ा प्रकाशन "कपालकुंडा" था जिसे सभी ने बहुत पसंद किया और इस उपन्यास में उन्हें एक लेखक के रूप में स्थापित किया।
वर्ष 1869 में बंकिम चंद्र जी ने "मृणालिनी" नाम का एक उपन्यास लिखा जिसमें उन्होंने पहली बार ऐतिहासिक संदर्भ में कहानी लिखी थी। बाद में बंकिम चंद्र जी ने "बांगदर्शन" नामक अपनी मासिक साहित्यिक पत्रिका का प्रकाशन शुरू किया। यह पत्रिका 4 साल तक प्रकाशित होती रही।
वर्ष 1877 में बंकिम चंद्र जी ने "चंद्रशेखर" नाम का उपन्यास लिखा और प्रकाशित किया। इस उपन्यास में उन्होंने अलग शैली से लिखा था।
वर्ष 1877 में ही बंकिम चंद्र जी ने "रजनी" नाम का साहित्य भी प्रकाशित किया जिसे बंकिम चंद्र जी की आत्मकथा कहा जाता है।
वर्ष 1882 में बंकिम चंद्र जी ने "आनंदमठ" नाम का एक राजनीतिक उपन्यास लिखा था। इसकी कहानी हिंदू राष्ट्र और ब्रिटिश राज्य के इर्द-गिर्द थी।
बंकिम चंद्र जी ने इसके अलावा और भी साहित्य की रचना की थी, जैसे- लोकसाहित्य, देवी चौधरानी, सीताराम, कृष्णा चरित्र, विज्ञान रहस्य, धर्मात्व आदि। बंकिम चंद्र जी अपने सभी उपन्यासों और निबंधों के लिए जाने जाते हैं लेकिन इनकी रचना "आनंदमठ" सबसे अधिक प्रसिद्ध हुई। इसमें ही बंकिम चंद्र जी ने "वंदे मातरम" गीत को पहली बार लिखा था।
वर्ष 1906 में बिपिन चंद्र पाल ने "वंदे मातरम" के नाम से देश भक्ति पत्रिका शुरू की थी। इनकी तरह ही लाला लाजपत राय जी ने भी "वंदे मातरम" के नाम का जर्नल प्रकाशित किया था। बंकिम चंद्र जी ने बंगाली भाषा में आधुनिक साहित्य की शुरुआत की थी। इससे पहले कोई भी लेखक इंग्लिश या संस्कृत भाषा में ही साहित्य लिखा करता था। बंगाल साहित्य को आमजन तक पहुंचाने वाले बंकिम चंद्र जी ही थे। बंकिम चंद्र जी की मात्र 55 साल में अपने कामकाज से रिटायर होने के तुरंत बाद ही 8 अप्रैल 1894 को बंगाल के कलकत्ता में उनकी मृत्यु हो गई। बंकिम चंद्र जी की मृत्यु भारत देश के लिए एक बड़ी हानि थी लेकिन उनके द्वारा लिखी हुई रचनाएं, लेख, कविता हर स्वतंत्रता सेनानी के अंदर देश की आजादी के प्रति उमंग जगा देता था।